July 27, 2024

Tulsi Vivah 2023: जानिए तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि,तुलसी विवाह का महत्व और इसकी कथा

Tulsi Vivah 2023: जानिए तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि,तुलसी विवाह का महत्व और इसकी कथा: तुलसी विवाह कार्तिक माह की एकादशी को मनाया जाता है। यह देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक पर्व है। देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। देवता जब जागते हैं तो सबसे पहले प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है जिनका एक नाम वृंदा भी है। इसीलिए देव जागरण के पवित्र मुहूर्त पर तुलसी विवाह का आयोजन भगवान के स्वागत के लिए किया जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार देव उठावनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ तुलसी का विवाह होता है। तुलसी विवाह का अर्थ है तुलसी के माध्यम से भगवान का आवाहन।

Tulsi Vivah 2022

तुलसी विवाह कार्तिक माह की एकादशी को मनाया जाता है। यह देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक पर्व है। देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। देवता जब जागते हैं तो सबसे पहले प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है जिनका एक नाम वृंदा भी है। इसीलिए देव जागरण के पवित्र मुहूर्त पर तुलसी विवाह का आयोजन भगवान के स्वागत के लिए किया जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार देव उठावनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ तुलसी का विवाह होता है। तुलसी विवाह का अर्थ है तुलसी के माध्यम से भगवान का आवाहन।

कब है तुलसी विवाह?

हिंदू धर्म में कार्तिक माह की के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। वर्ष 2023 में देवोत्थान एकादशी 23 नवंबर को है अतः वर्ष 2023 में तुलसी विवाह 23 नवंबर को होगा। 23 नवंबर को भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह किया जाएगा इसी दिन से मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है।

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तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर को 11:03 पर शुरू होगी और 23 नवंबर को रात्रि 9:01 पर समाप्त हो जाएगी। आत: उदया तिथि के अनुसार देवोत्थान एकादशी 23 नवंबर को मनाई जाएगी। तुलसी विवाह प्रदोष काल में किया जाता है अतःपूजा का समय 6:50 से 8:09 तक रहेगा।

तुलसी विवाह की सामग्री

तुलसी विवाह के समय पूजा में हल्दी की गांठ, शालिग्राम, श्रृंगार सामग्री, तुलसी का पौधा, अक्षत,रोली, कुमकुम, तिल, घी, फल, फूल, दीपक, गन्ना,मूली, शकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर, गन्ना, सीताफल, अमरुद और अन्य ऋतु फल चढ़ाए जाते हैं। इसके साथ ही सुहागन स्त्रियां पूजा के समय माता तुलसी को सुहाग का सामान और लाल चुनरी चढ़ाती हैं।

तुलसी विवाह की पूजा विधि

 एकादशी के दिन एक चौकी पर तुलसी का पौधा और दूसरी चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करें और उनके बगल में एक जल भरा कलश रखकर उसके ऊपर आम के पांच पत्ते रखें। तुलसी के गमले को गेरू से रंगे। भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराएं और उन्हें पीला वस्त्र अर्पित करें। तुलसी और शालिग्राम को हल्दी लगायें।इसके पश्चात दीपक जलाकर तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल का छिड़काव करके, रोली और चंदन का टीका लगाए। गन्ने से तुलसी के गमले में ही मंडप बनाएं। तुलसी और शालिग्राम की विधिवत पूजा के पश्चात फल, फूल, मिठाई अर्पित करें। इसके पश्चात तुलसी जी को सुहाग की प्रतीक लाल रंग की चुनरी को ओढ़ाए और उनका दुल्हन की तरह श्रृंगार करें। बिंदी लगाए, चूड़ी पहनाये।इसके पश्चात उनको सिंदूर चढ़ाएं सारे सुहाग के समान चढ़ायें।इसके पश्चात शालिग्राम को हाथ में लेकर तुलसी जी की सात बार परिक्रमा करें और आखिर में आरती करें। इसके पश्चात प्रसाद वितरण करें ।

तुलसी विवाह के पीछे क्या है कथा

 पौराणिक मान्यता के अनुसार जालंधर नामक राक्षस था जो बड़ा ही वीर तथा पराक्रमी था। उसने चारों तरफ  अत्याचार मचा रखा था। सभी देव उसके अत्याचार से त्रस्त हो गए थे लेकिन उसको कोई हरा नहीं सकता था। उसकी वीरता और अजेय होने का रहस्य था उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण जालंधर सर्वजयी बना हुआ था। जालंधर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और जालंधर से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग करने का निश्चय किया। भगवान विष्णु जालंधर का रूप धारण कर उसकी पत्नी वृंदा के पास गए। उधर जालंधर देवताओं से युद्ध कर रहा था। भगवान विष्णु द्वारा वृंदा का सतीत्व नष्ट करते ही जालंधर मार गया। लेकिन जब बृंदा को यह पता चला कि वह भगवान विष्णु द्वारा छली गई है तो उसने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को शाप दे दिया कि तुमने मेरा सतीत्व नष्ट किया है अतः तुम पत्थर के बनोगे। यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई और भगवान विष्णु ने काले पत्थर के रूप में अवतार लिया जिसे शालिग्राम कहा जाता है।।जिस जगह पर वृंदा सती हुई थी वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।भगवान विष्णु के काले पत्थर के स्वरूप को ही शालीग्राम कहा जाता है। भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया कि “हे वृंदा अपने सतीत्व के कारण तुम तुलसी बनकर मेरे साथ रहोगी जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा वह परम धर्म को प्राप्त होगा।” इसीलिए शालिग्राम और विष्णु की पूजा बिना तुलसी दल की अधूरी मानी जाती है।

तुलसी विवाह का महत्व

 तुलसी विवाह करना अत्यंत शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में कार्तिक माह की एकादशी का बहुत ही महत्व है। इस एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी विवाह से कन्यादान के बराबर फल प्राप्त होता है।जीवन सुखमय होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह कराने वाले व्यक्ति के जीवन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और भगवान नारायण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। तुलसी विवाह संपन्न कराने वालों का वैवाहिक जीवन सुखमय होता है तथा दांपत्य जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

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