ओम बिरला चुने गए 18 वीं लोकसभा के अध्यक्ष, जानिए कितना शक्तिशाली होता है लोकसभा अध्यक्ष का पद
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Om Birla Speaker of the Lok Sabha: भाजपा सांसद और एनडीए गठबंधन के उम्मीदवारOm Birla लोकसभा के अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। ओम बिरला के नाम का प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखा और केंद्रीय मंत्री अमित शाह राजनाथ सिंह समेत कई दिग्गजों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। वहीं विपक्ष ने के. सुरेश के नाम का प्रस्ताव रखा। प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब ने सदन की कार्यवाही आगे बढ़ाते हुए प्रस्ताव को सबके सामने रखा। ध्वनि मत के आधार पर उन्होंने ओम बिरला को लोकसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने के लिए आमंत्रित किया। ओम बिरला को आसन तक ले जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू के साथ नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी साथ आए।
ओम बिरला के नाम बना यह रिकॉर्ड
Om Birla दूसरी बार लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया है। अध्यक्ष के रूप में ओम बिरला कड़े फैसले लेने के लिए भी जाने गए। ओम बिरला के दूसरी बार अध्यक्ष बनने पर यह पांचवीं बार ऐसा हो रहा है कि कोई अध्यक्ष एक लोकसभा से अधिक कार्यकाल तक इस पद पर आसीन रहेगा। इससे पहले कांग्रेस के बलराम जाखड़ एकमात्र ऐसे सांसद हैं जो लगातार दो बार अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं।
18 वीं लोकसभा के अध्यक्ष का चयन हो चुका है लेकिन क्या आप जानते हैं कि लोकसभा अध्यक्ष का पद कितना अहम है? यह पद अन्य मंत्रियों और सांसदों से कितना अधिक शक्तिशाली है? अथवा अध्यक्ष का क्या काम होता है? आईए जानते हैं-
कौन होता है लोकसभा अध्यक्ष ?
भारत के संसदीय लोकतंत्र में अध्यक्ष पद का महत्वपूर्ण स्थान है। अध्यक्ष पद के बारे में कहा गया है कि संसद सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं तो अध्यक्ष सदन के ही पूर्ण प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है।
लोकसभा अध्यक्ष एक ऐसे दायित्व का निर्वहन करता है जिसमें संसदीय जीवन के किसी भी पहलू को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। यद्यपि अध्यक्ष सभा में कभी-कभार ही बोलता है परंतु वह जब भी कुछ बोलता है, संपूर्ण सदन के लिए बोलता है। अध्यक्ष को संसदीय लोकतंत्र की परंपराओं का वास्तविक संरक्षक माना जाता है। लोकसभा अध्यक्ष का महत्व इसी बात से पता चलता है कि उसका नाम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के तुरंत बाद आता है। इसका अर्थ है कि लोकसभा अध्यक्ष का स्थान राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बाद सबसे महत्वपूर्ण है। अतः यह अपेक्षा की जाती है कि इस उच्च गरिमा वाले पद का पदाधिकारी एक ऐसा व्यक्ति हो जो सदन के सभी आविर्भावों में उसका प्रतिनिधित्व कर सके।
कैसे होता है लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन ?
वैसे तो अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए कोई विशेष योग्यता निर्धारित नहीं की गई है। संविधान में केवल संसद सदस्य होना ही एकमात्र योग्यता है लेकिन अध्यक्ष का पद धारण करने वाली व्यक्ति के लिए संविधान, देश की कानून प्रक्रिया, नियमों और संसद की परिपाटियों की समझ होना एक महत्वपूर्ण गुण माना जाता है। लोकसभा के प्रथम कार्यों में से एक कार्य अध्यक्ष चुनाव का होता है।
सामान्यतः सत्तारूढ़ दल के सदस्य को ही अध्यक्ष निर्वाचित किया जाता है। जिसके अंतर्गत सत्तारूढ़ दल सदन में अन्य दलों और समूहों के नेताओं के साथ अनौपचारिक विचार विमर्श करने के पश्चात अपना उम्मीदवार घोषित करता है। निर्वाचित होने के बाद अध्यक्ष को सदन के सभी वर्गों का सम्मान प्राप्त होता है। भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में दोनों की पीठासीन अधिकारियों, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन इसके सदस्यों में से सभा में उपस्थिति मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है
लोकसभा अध्यक्ष का कार्यकाल
लोकसभा अध्यक्ष का कार्यकाल उसके इस पद पर निर्वाचित किए जाने की तारीख से लेकर जिस लोकसभा में उसका निर्वाचन किया गया है उस लोकसभा के भंग होने के बाद नई लोकसभा की प्रथम बैठक के ठीक पहले तक रहता है। लोकसभा अध्यक्ष पुन: इस पद पर निर्वाचित हो सकता है। यदि लोकसभा भंग हो जाए तो ऐसी स्थिति में संसद सदस्य नहीं रहने पर भी उसे अपना पद नहीं छोड़ना पड़ता। लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को लिखित सूचना देकर अपने पद से त्यागपत्र ले सकता है।
क्या अध्यक्ष को उसके पद से हटाया जा सकता है ?
लोकसभा अध्यक्ष को उसके पद से लोकसभा में उपस्थित सदस्यों द्वारा बहुमत से पारित संकल्प द्वारा ही हटाया जा सकता है। अध्यक्ष को हटाने के लिए कुछ शर्ते पूरा करना अनिवार्य होता है-
- इसमें लगाए गए आरोप सुस्पष्ट होने चाहिए
- इसमें तर्क वितर्क, निष्कर्ष व्यंग्योक्ति, लांछन और मानहानि संबंधी कोई कथन नहीं होना चाहिए।
- यदि लोकसभा अध्यक्ष सांसद का सदस्य ना हो।
- ऐसा प्रस्ताव अध्यक्ष को 14 दिन पहले अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है
लोकसभा अध्यक्ष के कार्य और शक्तियां
लोकसभा अध्यक्ष को संविधान द्वारा व्यापक अधिकार एवं शक्तियां प्रदान की गई हैं। लोकसभा अध्यक्ष सदन के अंदर भारत के संविधान के प्रावधानों, लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों तथा संसदीय मामलों का अंतिम व्याख्याकार होता है। सभा के कार्यों से संबंधित प्रावधानों पर उनका निर्णय और उनकी व्याख्या अंतिम होती है। लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है तथा आमतौर पर उसके निर्णय पर ना तो कोई प्रश्न चिन्ह लगाया जा सकता है, ना ही कोई चुनौती दी जा सकती है और न हीं आलोचना की जा सकती है।
अध्यक्ष ही यह निर्णय करता है कि कोई प्रश्न स्वीकार्य है अथवा नहीं। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के लिए संशोधन किस रूप में प्रस्तुत किए जाएंगे यह निर्णय भी अध्यक्ष ही करता है।
किसी विधेयक पर कोई भी संशोधन प्रस्तुत करने के लिए अध्यक्ष की अनुमति आवश्यक है। यदि सभा के पास कोई विधायक लंबित पड़ा है तो अध्यक्ष ही यह निर्णय करता है कि विधेयक के विभिन्न खंडों के लिए संशोधन प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाए अथवा नहीं।
लोकसभा में चर्चा के दौरान अध्यक्ष हैं यह निर्णय लेता है कि कोई सदस्य कब और कितनी देर तक बोलेगा।
लोकसभा अध्यक्ष ऐसे सदस्य को सदन से निष्कासित कर सकता है जो उनके आदेशों अथवा निर्देशों का उल्लंघन करता है।
वित्तीय शक्तियां
वित्तीय मामलों में लोकसभा अध्यक्ष के पास अभिभावी शक्तियां होने के कारण वह धन विधेयकों का प्रमाणन करता है और इस बारे में अंतिम निर्णय लेता है कि कौन से मामले वित्तीय मामले हैं। किसी विधायी मामले के संबंध में दोनों सभाओं में असहमति होने की स्थिति में बुलाई गई संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष हीं करता है। लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा के प्रत्येक सत्र की समाप्ति पर तथा सभा का कार्यकाल समाप्त होने पर विदाई भाषण देता है। लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा में मतदान के दौरान पक्ष तथा विपक्ष के मत बराबर होने की स्थिति में ही मतदान करता है अन्यथा नहीं।
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समितियों का गठन
लोकसभा अध्यक्ष ही लोकसभा की समितियों का गठन करता है। यह समितियां अध्यक्ष के निर्देशन में कार्य करती हैं। अध्यक्ष द्वारा सभी समितियों के अध्यक्ष मनोनीत किए जाते हैं। कार्य मंत्रणा समिति, सामान्य प्रयोजनों संबंधी समिति और नियम समिति का सभापति स्वयं अध्यक्ष होता है।
लोकसभा अध्यक्ष की प्रशासनिक शक्तियां
लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा सचिवालय का प्रमुख होता है। यह सचिवालय उसके नियंत्रण और निर्देशों के अधीन कार्य करता है। सभा के सचिवालय कर्मियों, संसद परिसर और इसके सुरक्षा प्रबंधन में अध्यक्ष का प्राधिकार सर्वोपरि है। अध्यक्ष की अनुमति के बिना संसद भवन में कोई भी परिवर्तन और परिवर्धन नहीं किया जा सकता तथा संसदीय संपदा में किसी नए भवन का निर्माण नहीं किया जा सकता है।
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भारतीय संसदीय समूह की अध्यक्षता
लोकसभा अध्यक्ष भारतीय संसदीय समूह के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है। यह समूह भारत की संसद और विश्व की विभिन्न संसदो के बीच एक कड़ी है।
लोकसभा अध्यक्ष सभा का सदस्य होने के साथ इसका पीठासीन अधिकारी भी होता है। अध्यक्ष यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक परिस्थिति में संसदीय शिष्टाचार का निर्वहन किया जाए। जहां एक और अध्यक्ष का प्रयास होता है कि सदन में सभी वर्गों के सदस्यों को विचार व्यक्त करने का समुचित अवसर प्रदान किया जाए वहीं दूसरी उसे सभा की मर्यादा भी बनाए रखनी पड़ती है।
भारत में अध्यक्ष पद एक जीवंत और गतिशील संस्था है। अध्यक्ष सभा का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है। वह सभा का प्रमुख वक्ता होता है।