Guru Nanak Jayanti (Prakash Parv 2023): सिक्खों के प्रथम गुरू, गुरु नानक देव जी का 554 वां प्रकाश पर्व
Guru Nanak Jayanti 2023, Prakash Parv 2023: गुरु नानक (Guru Nanak) सिक्खों के प्रथम गुरु थे। उनके अनुयायी उन्हें ‘गुरु नानक’, ‘नानक शाह’ और ‘बाबा नानक’ के नाम से पुकारते थे। 20 अगस्त 1507 को गुरु नानक देव जी सिक्खों के प्रथम गुरु बने और 22 सितंबर 1539 से इस पद पर रहे। गुरु नानकजी, पैगंबर, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, दार्शनिक, समाज सुधारक, धर्म सुधारक, संगीतज्ञ, कवि, देशभक्त, विश्वबंधु जैसे सभी गुणों को अपने में समेटे हुए थे। (Guru Nanak Dev ji)
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Guru Nanak Jayanti 2023 || प्रकाश पर्व || Birth Anniversary of Guru Nanak Dev Ji || Prakash Parv || 27, नवम्बर 2023 || Guru Nanak Dev Ji
Guru Nanak Jayanti 2023: गुरु नानक (Guru Nanak) सिक्खों के प्रथम गुरु थे। उनके अनुयायी उन्हें ‘गुरु नानक’, ‘नानक शाह’ और ‘बाबा नानक’ के नाम से पुकारते थे। 20 अगस्त 1507 को गुरु नानक देव जी सिक्खों के प्रथम गुरु बने और 22 सितंबर 1539 से इस पद पर रहे। गुरु नानकजी, पैगंबर, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, दार्शनिक, समाज सुधारक, धर्म सुधारक, संगीतज्ञ, कवि, देशभक्त, विश्वबंधु जैसे सभी गुणों को अपने में समेटे हुए थे।
प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को Guru Nanak Dev Ji का जन्म दिवस मनाया जाता है। गुरुनानक देव का जन्म दिवस प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।सिक्खों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी (Guru Nanak Dev Ji) का 554 वा प्रकाश वर्ष (Prakash Parv) 2023 में 27 नवंबर को श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा।
कब मनाया जाता है प्रकाश पर्व (When is Prakash Parv Celebrated) ?
सिक्ख धर्म के संस्थापक और सिक्खों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस कार्तिक माह की पूर्णिमा को हुआ था। इसीलिए प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा को उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2023 में कार्तिक माह की पूर्णिमा 27 नवंबर को है अतः गुरु नानक जयंती 27 नवंबर को मनाई जा रही है।
गुरु नानक जयंती को ‘प्रकाश पर्व’ (Prakash Parv) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गुरुद्वारा को रोशनी से प्रकाशित करके प्रकाशोत्सव मनाया जाता है। इस पर्व को कई अन्य नाम से भी जाना जाता है। जैसे, ‘प्रकाश पर्व’, ‘गुरु पर्व’, ‘गुरु पूरब’।
प्रकाश पर्व के अवसर पर आईए जानते हैं सिक्खों के प्रथम गुरु और सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी के जीवन के बारे में-
गुरू नानक देव जी का जीवन परिचय (Biography of Guru Nanak Dev Ji)
गुरु नानक देव जी का जन्म पंजाब के तलवंडी नामक स्थान में 15 अप्रैल 1469 को एक किसान के घर पर हुआ था। लाहौर से 30 मील पश्चिम में स्थित यह स्थान अब ननकाना साहब कहलाता है। गुरु नानक देव जी के पिता का नाम कालू एवं माता का नाम तृप्ता था। उनके पिता खत्री जाति एवं बेदी वंश के थे। गुरु नानक देव का बचपन गांव में ही व्यतीत हुआ। खेलकूद के समय में नानक देव आत्म चिंतन में निमग्न रहते थे।
गुरू नानक देव जी की शिक्षा
7 वर्ष की उम्र में अध्ययन के लिए Guru Nanak को अध्यापक के पास भेजा गया लेकिन वहां भी वे पढ़ाई से विरक्त हो आत्म चिंतन में निमग्न थे और जब अध्यापक ने पढ़ाई न करने का कारण पूछा तो गुरु नानक ने कहा, ‘ मैं सारी विद्याएं जानता हूं’। उन्होंने कहा मुझे सांसारिक अध्ययन की अपेक्षा परमात्मा का अध्ययन अधिक आनंददायक प्रतीत होता है। यह कहकर उन्होंने उच्चारण किया
“मोह को जलाकर उसे घिसकर स्याही बना लो, बुद्धि को श्रेष्ठ कागज, प्रेम को कलम और चित्त को लेखक बनाकर गुरु से पूछ कर लिखो कि परमात्मा का न तो तो अंत है ना सीमा।” गुरु नानक देव के इस उत्तर से अध्यापक समझ गए कि यह पहुंचा हुआ फकीर है। गुरु नानक जी पढ़ाई छोड़कर अपना अधिकांश समय मनन, ध्यानासन एवं सत्संग में व्यतीत करने लगे उन्होंने विभिन्न संप्रदायों के साधु महात्माओं का सत्संग किया।
यज्ञोपवीत संस्कार
9 वर्ष की अवस्था में जब गुरु नानक देव का यज्ञोपवीत संस्कार होने लगा तो उन्होंने पंडित से कहा कि ऐसा जनेऊ मेरे गले में पहनाओ जिसकी दया कपास हो, संतोष सूत हो, संयम गांठ हो और सत्य उस जानेऊ की पूरन हो अर्थात आध्यात्मिक जनेऊ।उन्होंने कहा ऐसा जनेऊ तुम्हारे पास हो तो मुझे पहनाओ,जो ना टूटता है, ना जलता है, ना खोता है और न हीं मैला होता है।
विवाह
गुरु नानक देव के विवाह के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनका विवाह 1485 ईस्वी में बटला निवासी मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। 28 वर्ष की उम्र में गुरु नानक के बड़े पुत्र श्रीचंद और 31 वर्ष की उम्र में द्वितीय पुत्र लक्ष्मीचंद का जन्म हुआ।
गुरू नानक जी का व्यापार
Guru Nanak के पिता उन्हें कृषि व्यापार में लगाना चाहते थे लेकिन अपने इस प्रयास में वे असफल हुए। एक बार उनके पिता ने उन्हें घोड़े का व्यापार करने के लिए रुपए दिए, लेकिन गुरु नानक ने उन रूपयों को साधु सेवा में लगा दिया और अपने पिता पिताजी से कहा यही सच्चा व्यापार है।
1504 से 1507 तक गुरु नानक सुल्तानपुर में रहे और वहां के गवर्नर दौलत खां के यहां मादी रख लिए गए। नानक के ईमानदारी पूर्ण कार्य से दौलत खां और वहां की जनता बहुत संतुष्ट थी।गुरु नानक अपनी आय का अधिकांश हिस्सा गरीबों और साधुओं को दे देते थे। तलवंडी से आकर मरदाना भी गुरु नानक का सेवक बन गया था, जो अंतिम समय तक नानक के साथ रहा। गुरु नानक जब पद गाते थे तब मरदाना रवाब बजाता था। कभी-कभी नानक जी पूरी रात परमात्मा के भजन करते रह जाते थे।
परमात्मा से हुआ साक्षात्कार
कहते हैं कि गुरु नानक नित्य प्रातः बेई नदी में स्नान करने जाया करते थे। एक दिन स्नान के पश्चात वे वन में अंतरध्यान हो गए। ऐसा कहा जाता है कि उन्हें वहीं पर परमात्मा का साक्षात्कार हुआ।
परमात्मा ने कहा, “मैं सदैव तुम्हारे साथ हूं, मैंने तुम्हें आनंदित किया। अब तुम अपने संपर्क में आने वालों को आनंदित करोगे। जाओ और स्वयं नाम लो और दूसरों को भी नाम स्मरण करो। दान दो, उपासना करो। इस घटना के पश्चात उन्होंने परिवार का त्याग कर दिया और धर्म का प्रचार करने निकल पड़े। इस यात्रा में मरदाना उनके साथ रहा।
गुरु नानक की यात्राएं
- गुरु नानक देव जी ने पहली विचरण यात्रा (उदासी) में हरिद्वार, प्रयाग, अयोध्या, काशी, गया, पटना, जगन्नाथ पुरी, असम, रामेश्वरम, सोमनाथ, द्वारिका, बीकानेर,नर्मदा तट, पुष्कर तीर्थ, पानीपत, कुरुक्षेत्र, दिल्ली, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानाे पर भ्रमण किया।
- दूसरी विचरण यात्रा(उदासी) 1517 से 1518 ई.तक रही। इस यात्रा के अंत में वे भ्रमण करते हुए करतारपुर पहुंचे।
- तीसरी उदासी(विचरण यात्रा)1518 ई से 1521 ई तक लगभग 3 वर्ष की रही। इस दौरान नानक देव ने मक्का- मदीना, बगदाद, काबुल, कंधार, बल्ख बुखारा, ऐमानाबाद आदि स्थानों की यात्रा की। ऐमराबाद पर 1527 में बाबर के आक्रमण को गुरु नानक ने स्वयं अपनी आंखों से देखा था। यात्रा पूरी करने के पश्चात गुरु नानक जी करतारपुर में बस गए और 1521 से 1539 तक वही रहे।
व्यक्तित्व
गुरु नानक का व्यक्तित्व असाधारण था। उन्होंने पूरे देश की यात्रा के दौरान लोगों के विचारों को असाधारण रूप से प्रभावित किया। उनमें विचार- शक्ति और क्रिया- शक्ति का अपूर्व सामंजस्य था। पैगंबर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्म सुधारक, देशभक्त विश्वबंधु आदि सभी गुण नानक में सिमट कर आ गए थे। सिक्खों के लिए नानक देव जी की “जपुजी” का वही महत्व है जो “गीता” का हिंदुओं के लिए है।
निर्गुण उपासक थे Guru Nanak Ji
पंजाब में मुसलमानों के कारण कट्टर ‘एकेश्वरवाद’ का संस्कार प्रबल हो रहा था। मुसलमानो के प्रभाव से शास्त्रों के पठन-पाठन का क्रम प्रायः समाप्त हो चुका था। लोगों के अंदर धर्म और उपासना के गूढ़ तत्व की समझ समाप्त हो गई थी। लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनाया जा रहा था।
ऐसे में गुरु नानक एक ऐसे मत की ओर आकर्षित हुये जिसकी उपासना का स्वरूप हिंदू और मुसलमान दोनों समान रूप से ग्रहण कर सके और वह मत था कबीर द्वारा प्रवर्तित ‘निर्गुण संत मत’। गुरु नानक ने कबीर दास की निर्गुण उपासना का प्रचार पंजाब में प्रारंभ किया और सिक्ख संप्रदाय के ‘आदिगुरु’ बने। कबीर दास की तरह वे भी विशेष पढ़े-लिखे नहीं थे परंतु भक्ति भाव से परिपूर्ण होकर वे भजन गाते थे जिनका संग्रह (संवत 1661) ‘ग्रंथ साहब’ में किया गया है।
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं
गुरु नानक की शिक्षा का मूल निचोड़ है कि परमात्मा एक अनंत, सर्वशक्तिमान, सत्य, कर्ता, अयोनी, स्वयंभू है। गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत प्रोत है। उनकी वाणी में तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति की झलक मिलती है।
उन्होंने सच्चे हिंदू और सच्चे मुसलमान बनने का तरीका बताया तथा दोनों की प्रचलित रूढ़ियों एवं कुसंस्कारों की तीव्र आलोचना की। संत साहित्य में गुरु नानक देव ही ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने स्त्रियों के महत्व को स्वीकार किया और कभी स्त्रियों की निंदा नहीं की। गुरु नानक ने अपने अनुयायियों को 10 शिक्षाएं दी हैं जो इस प्रकार हैं –
- ईश्वर एक है।
- वह सब जगह है और प्राणी मात्रा में विद्यमान है।
- सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
- ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
- बुरा कार्य करने के बारे में ना सोचें और ना किसी को सताए।
- ईमानदारी से और मेहनत करके उदर पूर्ति करनी चाहिए।
- मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
- सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
- सदैव प्रसन्न रहना चाहिए ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए।
- भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ, लालच व संग्रह वृत्ति बुरी है।
नानक देव की रचनाएं
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में उनकी रचनाएं ‘ महला 1’ के नाम से संकलित हैं।
भक्त कवि के रूप में नानक की विशेषताएं
गुरु नानक (Guru Nanak Ji ) की वाणी में शांत एवं श्रृंगार रस की प्रधानता है। इन दोनों रसों के अतिरिक्त करुण,भयानक, वीर, रौंद्र,अद्भुत, हास्य और वीभत्स रस भी मिलते हैं।
- उनकी कविता में उपमा और रूपक अलंकार की प्रधानता है।
- गुरु नानक की वाणी में फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली आदि प्रयोग हुए हैं।
- गुरु नानक की कविता में प्रकृति का बड़ा ही सुंदर चित्रण मिलता है।
मृत्यु
गुरु नानक ने गुरुगद्दी का भार ‘गुरु अंगद देव’ (सिक्खों के द्वितीय गुरु) को सौंप दिया और स्वयं करतारपुर में अमर ज्योति में लीन हो गए। सन 1539 में गुरु नानक देव की मृत्यु हो गई।
गुरु नानक देव ने बहुतों का हृदय परिवर्तन किया, ठगों को साधु बनाया, वेश्याओं का अंत:करण शुद्ध कर नाम का दान दिया, कर्मकांडियो को बाह्यआडंबरों से निकलकर रागात्मिकता भक्ति में लगाया, अहंकारियो का अहंकार दूर कर उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाया।
कैसे मनाया जाता है प्रकाश पर्व(How is Prakash Parv Celebrated)?
Prakash Parv के पावन अवसरपर अनेक उत्सव का आयोजन होता है। इस दिन के पावन अवसर पर सिक्खों के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ का 3 दिन का अखंड पाठ किया जाता है। गुरु ग्रंथ साहब को फूलों से सजाया जाता है। इस दिन गुरु ग्रंथ साहब को पालकी पर रखकर जुलूस निकाला जाता है जिसे पूरे गांव या नगर में घुमाया जाता है। इसका प्रतिनिधित्व पंज- प्यारे करते हैं। पूरी शोभायात्रा के दौरान गुरुबाणी का पाठ किया जाता है।
प्रकाश पर्व का महत्व (Significance of Prakash Parv)
Guru Nanak Dev Ji ने मानवता को सर्वोपरि रखते हुए सिक्ख धर्म की स्थापना की। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानवता को समर्पित कर दिया। माना जाता है कि गुरु नानक देव जी ने ही लंगर प्रथा की भी शुरुआत की थी। यही कारण है कि गुरु नानक जयंती सिक्ख धर्म के सबसे प्रमुख पर्व में से एक है।
25 नवम्बर को पकिस्तान रवाना हुआ 2,704 श्रद्धालुओं का जत्था
श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में पाकिस्तान स्थित गुरु धाम की यात्रा के लिए 2,704 श्रद्धालुओं का जत्था 25 नवंबर को अटारी सीमा सड़क मार्ग से पाकिस्तान रवाना हुआ। कुल 5,822 भारतीय श्रद्धालुओं ने पाकिस्तान दूतावास में वीजा के लिए आवेदन किया था जिसमें से 50% से अधिक श्रद्धालुओं के वीजा को रद्द कर दिया गया है।
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